कादंबरी माँ सरस्वती का नाम है। मेरा ये ब्लॉग कविता जगत के उन महान स्तंभों को समर्पित है जिनकी लेखनी को माँ सरस्वती का आशिर्वाद प्राप्त है। बचपन से जिन्हें पढ़ती आई , जिनके लेखन ने मन को छुआ और जीवन के पथ -प्रदर्शक बने रहे , उन सभी की रचनाओं को संकलित करती रही , इन में से अधिकांश आपने पढ़ी होंगी फिर भी अपनी पसंदीदा कविताओं को अब आप सभी के साथ बाँट रही हूँ। कुछ रचनाओं के लेखकों के नाम मैं यहाँ दे रही हूँ , लेकिन कुछ के नाम मालूम न होने के कारण लिख नहीं पाई हूँ। यदि आप को पता हों तो जरूर बताएँ।
बुधवार, 16 अक्तूबर 2013
जिन्दगी में सिर्फ मैंने की तुम्हारी कामना,
और वो भी लालसा ऐसी की जो पूरी न हो।
विश्व ने मांगी जगत की सम्पदा,
और मैंने स्नेह के दो-चार कण ,
सत्य ने मुझको कहा खोटा -खरा,
मैं रहा पर जोड़ा टूटे सपन,
जिन्दगी में सिर्फ मैंने की तुम्ही से याचना,
और वो भी लालसा ऐसी की जो पूरी न हो।
तन मिले इतने की जो संभले नहीं,
पर न मांगे भी तुम्हारा मन मिला बे कहे तो बाग सारा हंस दिया ,
पर जिसे चाह सुमन वो अनखिला ,
मैं तुम्हे पाने बहुत से रूप धर क्या-क्या बना ,
और वो भी लालसा ऐसी की जो पूरी न हो।
मैं बहुत कुछ नास्तिक जैसा न था,
पर तुम्हारी खोज में मंदिर गया,
कुछ पता शायद बताये इसलिए,
मैं नरक तक के चरण पर गिर गया,
यों तुम्हारे बोल सुनने के लिए क्या-क्या सुना,
और वह भी लालसा ऐसी की जो पूरी न हो।
क्षण भर की पहचान जगत् में जीने का सामान दे गई
पहले भी पथ था , पंथी थे ,
पर पथ से अनुरक्ति नहीं थी,
बिना तुम्हारे इस जीवन में,
नेह न था आसक्ति नहीं थी,
तुम क्या मिले की अनजाने ही,
मिलन विरह का ज्ञान मिल गया,
जियूं किसी के लिए या मिटूं ,
गौरव मिला गुमान मिल गया,
सहसा फूट पड़ी मानस में,
जो सरिताएं रुद्ध रही है,
और बहुत सी बातें हैं,
भाषा में जिनके शब्द नहीं हैं,
पाने की अभिलाषा स्वयं को,
खोने का वरदान दे गयी,
क्षण भर की पहचान जगत में
जीने का सामान दे गयी।
दीपक सहज ज्योति जन-जन में,
मिलना कहीं स्नेह की बाटी,
स्वर्ग सुलभ हो सकता है,
पर पण कठिन रह का सह,
जो दे ऐसी शक्ति की,
पग-पग अदि अनंत की सीमा नपे,
जिसकी चाय में शूलों का भय,
फूलों का मोह न व्यापे,
बिना तुम्हारे दुर्बल मिटटी की,
महिमा उद्वत न होती,
जीवन मरण सतत परिवारं,
की सार्थकता सिद्ध न होती,
पग की परहम रुझान,
पंथ में मिटने का अरमान दे गयी,
क्षण भर की पहचान जगत में,
जीने का सामान दे गयी।
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