मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अली सरदार जाफरी


खून की गर्दिश , दिल की धड़कन ,
सब रंगीनियाँ खो जायेंगी,
लेकिन मैं यहाँ फिर आऊँगा ,
मैं एक गुराइज़ा लम्हा हूँ,
आयाम के फसूखाने में,
मैं एक तड़पता कतरा हूँ,
मसरूफ-ए -सफ़र जो रहता है,
म़ाज़ी की सुराही के दिल से,
 मुस्तकबिल के पैमाने  में,
मैं सोता हूँ और जगता हूँ,
और जाग के फिर सो जाता हूँ,
सदियों का पुराना खेल हूँ मैं,
मैं मर के अमर हो जाता  हूँ।

कादंबरी माँ सरस्वती  का नाम है।मेरा ये ब्लॉग कविता जगत के उन महान  स्तंभों को समर्पित है जिनकी लेखनी को माँ सरस्वती  का आशिर्वाद प्राप्त है।बचपन से जिन्हें पढ़ती आई , जिनके लेखन ने मन को छुआ और जीवन के पथ -प्रदर्शक बने रहे  , उन सभी की रचनाओं को संकलित करती  रही ,इन में से अधिकांश आपने पढ़ी होंगी  फिर भी अपनी पसंदीदा  कविताओं को  अब आप सभी के साथ बाँट रही हूँ।